THE INDIAN EVIDENCE ACT, 1872
ACT NO. 1 OF 1872 [15th March, 1872.]
Preamble.—WHEREAS it is expedient to consolidate, define and amend the law of Evidence; It is hereby enacted as follows: —
PART I
RELEVANCY OF FACTS
CHAPTER II. – OF THE RELEVANCY OF FACTS
Section - 23.
Admissions in civil cases when relevant. –
In civil cases no admission is relevant, if it is made either upon an express condition that evidence of it is not to be given, or under circumstances from which the Court can infer that the parties agreed together that evidence of it should not be given.
Explanation. – Nothing in this section shall be taken to exempt any barrister, pleader, attorney or vakil from giving evidence of any matter of which he may be compelled to give evidence under section 126.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872
अधिनियम संख्या 1872 में से 1 [15 मार्च, 1872.]
प्रस्तावना।- जबकि साक्ष्य के कानून को समेकित, परिभाषित और संशोधित करना समीचीन है; इसके द्वारा निम्नानुसार अधिनियमित किया जाता है: -
भाग I
तथ्यों की प्रासंगिकता
दूसरा अध्याय। – तथ्यों की प्रासंगिकता के बारे में
धारा - 23.
जब प्रासंगिक हो दीवानी मामलों में प्रवेश। -
दीवानी मामलों में कोई स्वीकृति प्रासंगिक नहीं है, यदि यह या तो एक स्पष्ट शर्त पर किया जाता है कि इसका सबूत नहीं दिया जाना है, या उन परिस्थितियों में जिनसे न्यायालय यह अनुमान लगा सकता है कि पक्ष एक साथ सहमत हुए कि इसका सबूत नहीं दिया जाना चाहिए।
व्याख्या। - इस धारा की कोई बात किसी बैरिस्टर, प्लीडर, अटार्नी या वकील को किसी ऐसे मामले का सबूत देने से छूट देने के लिए नहीं ली जाएगी, जिसका उसे धारा 126 के तहत सबूत देने के लिए मजबूर किया जा सकता है।
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